डॉ- नेहा प्रधान सहायक राजकीय महाविद्यालय, तालेड़ा बूंदी राजस्थान में इतिहास विभाग में व्याख्याता हैं।
रक्षा का पर्व है रक्षाबंधन:
सनातन धर्म का स्थान विश्व के सर्वाधिक प्राचीन धर्मां में माना जाता है। इसमें कई संस्कारों का समावेश कर जीवन को समृद्ध बनाने के प्रयास किए गए इन्हीं में से एक परम्परा है रक्षासूत्र बांधने की जिसे वर्तमान में भाई-बहन के त्यौहार के रूप में मनाना आरंभ कर दिया गया है।
लेखिका का उद्देश्य मिथकों को दरकिनार कर केवल सनातन धर्म से वास्तविक परिचय करवाना है। यह लेख प्राचीन सनातन परम्परा को अक्षुण्ण रखने का एक प्रयास मात्र है। इसमें रक्षाबंधन के त्यौहार के लिए प्रचलित मिथकों को खंडित कर सांस्कृतिक महत्व बताने का कार्य किया है। वर्तमान में प्रचलित राखी के त्यौहार को भाई-बहन के त्यौहार के रूप में मान्यता प्रदान कर दी है जबकि हमारी संस्कृति में यह रक्षासूत्र के रूप में प्रचलित रहा है।
रक्षाबंधन अर्थात् जो आपकी रक्षा करे उसे यह सूत्र बांधा जाता था। इसका सबसे प्रथम प्रमाण देवासुर संग्राम में प्राप्त होता है। इसका उल्लेख भविष्य पुराण के “ उत्तर पर्व “ में इन्द्र-इन्द्राणी और बृहस्पति के मध्य वार्तालाप के रूप में उपलब्ध है।
जब इन्द्र हारने लगे तब बृहस्पति द्वारा मंत्रों से पवित्र रेशम के धागे को इन्द्राणी द्वारा इन्द्र के हाथ में बांधा गया। उस दिन श्रावणी पूर्णिमा का दिन था। इस अभिमंत्रित धागे के कारण इन्द्र को विजय प्राप्ति हुई तभी से सनातन धर्म में युद्ध से पूर्व रक्षासूत्र को कवच के रूप में बांधने का आरंभ हुआ।
जो कि एक पत्नी द्वारा पति को बांधा गया था न कि भाई द्वारा बहन को। रक्षासूत्र का अर्थ है यह जिसको आप बांधते हैं। उस पर आपकी रक्षा का दायित्व होता है। दक्षिण भारत में पत्नी द्वारा पति को रक्षासूत्र बांधा जाता है क्योंकि वह विवाहोपरांत पत्नी का रक्षक होता है।
भविष्यपुराण के उत्तर पर्व के अध्याय संख्या 137 में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्टिर को रक्षाबंधन सूत्र बांधने की विधि का वर्णन किया गया है जिसमें श्रावण मास की पूर्णिमा को पितरों के तर्पण कर अपरान्ह काल में रक्षापोटलिका (कपास या रेशम के वस्त्र में अक्षत, गौर सर्षप, सरसों, सुवर्ण, दूर्वा और चंदन आदि पदार्थ बांधकर पोटली बनाई जाती है।) बनाकर ताम्रपात्र में रखा जाता है।
गोबर से लीपकर एक चौकोर मंडल पर इसे स्थापित किया जाता था तत्पश्चात् पुरोहित द्वारा इसकी अर्चना कर राजा के दाहिने हाथ में बांधा जाता था। राजा द्वारा पुरोहित को वस्त्र, भोजन तथा दक्षिणा देकर संतुष्ट किया जाता था।
उत्तर पर्व में श्लोक संख्या 20 में “येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबन्धमि रक्षे मा चल मा चल।।“ का भी वर्णन है, जिसमें अर्थ है कि “जिस रक्षासूत्र से महाबलि राजा बली को बांधा गया था” उसी रक्षासूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं। यह रक्षा सूत्र तुम्हारी रक्षा करे और तुम स्थिर रहो।“ इस कथा का वर्णन भागवत पुराण और विष्णु पुराण में प्राप्त होता है।
जब वामन रूप में भगवान ने राजा बलि के वर को मानकर पाताल में निवास किया और बैकुण्ठ में न रहने के कारण माता लक्ष्मी ने बलि को रक्षासूत्र बांधा और उपहार स्वरूप बलि ने भगवान विष्णु को वचन से मुक्त किया किन्तु यहां भी कहीं पर भाई-बहन शब्द का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है।
महाभारत में प्रसंग है कि पांडवों द्वारा राजसूय यज्ञ के दौरान आमंत्रित राजाओं में से चेदी नरेश शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण का अपमान किए जाने पर उन्होंने अत्यधिक क्रोध में सुदर्शन से उसका वध किया। तब उनकी उंगली से खून बहने लगा और द्रौपदी ने साड़ी के चीर से उसे रोका तब भगवान ने उसे रक्षा का वचन दिया। उस दिन भी श्रावणी पूर्णिमा थी लेकिन इस कथा के दौरान भी कहीं भाई-बहन शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
इसी प्रकार 1905 में बंगाल के विभाजन के दौरान कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर ने हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने के लिए रक्षासूत्र के बंधन का आयोजन किया था जिसमें पीले धागों को रक्षासूत्र के रूप में एक-दूसरे को बांधा गया था।
इस कार्य को लाल बहादुर शास्त्री, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल ने पूरे देश में प्रचारित किया। छह वर्षों तक चले इस आंदोलन के कारण 11 दिसम्बर 1912 को ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने आदेश वापिस ले लिया था।
इस रक्षासूत्र की शक्ति के कारण ही इसे बांधने का प्रचलन आरंभ हुआ, हांलाकि सनातन में समस्त पवित्र कार्यों से पूर्व पुरोहित द्वारा यजमान को रक्षासूत्र बांधा जाता ”
का उच्चारण किया जाता है जिसका अर्थ है “रक्षा के लिए नमन। रक्षा के लिए नमन। रक्षा के लिए नमन। रक्षा के लिए नमन।“ इसी प्रकार अन्य श्लोक ॐ रक्षासूत्रेण रक्ष्यते सर्वदुष्टान्निवारणम्। सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकर्मसु साधकम।। का उच्चारण भी किया जातर है जिसका अर्थ है रक्षासूत्र से सभी दुष्ट शक्तियों से रक्षा होती है। यह सभी मंगल कार्यों का साधक है और सभी कर्मों में सफलता प्रदान करता है। ये श्लोक रक्षासूत्र की महत्ता और उसकी शक्ति को दर्शाते हैं। ये श्लोक विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और संस्कारों में प्रयुक्त होते हैं और विशेष रूप से रक्षा बंधन के समय रक्षासूत्र बांधने के दौरान उच्चारित किए जाते हैं।
हालाँकि इन श्लोकों का विशेष उल्लेख किसी एक ग्रंथ में नहीं मिलता है बल्कि ये श्लोक वैदिक और पौराणिक परंपराओं से जुड़े हुए हैं।
रक्षासूत्र बांधते समय यजमान हाथ में अक्षत ग्रहण करते हैं जिसे रक्षासूत्र बांधने के बाद पुरोहित यजमान से लेकर उस पर छिड़कते हैं जो उसकी मंगल कामना के लिए किया जाता है लेकिन वर्तमान में इस प्रथा ने अन्य रूप धारण कर लोगों के मन में इसे भाई-बहन के त्यौहार के रूप में स्थापित कर दिया है जो कि सर्वथा गलत धारणा है।
यह किसी के भी द्वारा किसी को भी बांधा जा सकता है जो हमारी रक्षा का दायित्व ग्रहण करने योग्य हो।
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