“वन्दे मातरम्” भारत की प्राण-शक्ति है, यह सदैव सर्वोच्च रहेगी–अरविन्द सिसोदिया

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कोटा, 10 दिसंबर। राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल के शिक्षा प्रोत्साहन प्रन्यासी अरविन्द सिसोदिया ने कहा कि “वन्दे मातरम् भारत की अमर प्राणशक्ति है। इसकी सर्वोच्चता को कभी कोई डिगा नहीं सकता । यह हमारी मातृभूमि की अमरता और अखंडता की दिव्य आत्मा है।

उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को अनंत धन्यवाद है, जिन्होंने स्वतंत्रता, स्वाभिमान और राष्ट्रभावना के इस महामंत्र के अद्वितीय शौर्य से, भारत की नई पीढ़ी को, भारत के जन जन को परिचित करवाया। संसद में हुई बहसों से लेकर सार्वजनिक आयोजनों तक, ‘वन्दे मातरम्’ की अलौकिक शक्ति को नई पीढ़ी की चेतना के केंद्र में स्थापित किया और तुष्टिकरण की नापाक राजनीति करने वालों की सच्चाई को बेनक़ाब कर दिया।

सिसोदिया ने कहा कि “भारत की ओजस्विता, तेजस्विता और असीम ऊर्जा का स्रोत ‘वन्दे मातरम्’ है। यह केवल एक गान नहीं, बल्कि राष्ट्रआत्मा का अनवरत स्पंदन है। स्वतंत्रता संग्राम के कठिनतम क्षणों में करोड़ों देशभक्तों के हृदय में साहस, शौर्य और संकल्प भरने वाला यह महामंत्र आज भी उतना ही प्रेरक और जीवन्त है।

उन्होंने आगे कहा कि अंग्रेजी शासन का इस गीत के प्रति द्वेषपूर्ण पूर्ण दृष्टिकोण साम्राज्यवादी मानसिकता की शत्रुता थी , “किन्तु आश्चर्य और खेद का विषय है कि वही तिरस्कारपूर्ण रवैया, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, संविधान निर्माण के दौरान और स्वतंत्र भारत में भी तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली कांग्रेस के भीतर दिखाई दिया, जो आज भी समझ से परे है।

सिसोदिया ने कहा कि ” वन्देमातरम के जय घोष से अंग्रेजों का बंग भंग समाप्त हुआ था और बंगाल पुनः एकीकृत हुआ था, जिसमें हिंदू मुस्लिम सब एक सूत्र में सम्मिलित हुये थे। वन्देमातरम एकता की प्रेरणा है। इसे कांग्रेस नें तुष्टिकरण के सामने आत्मसमर्पण करने काटा छांटा था। यह कोंग्रस का अक्षम्य अपराध है जो सदियों तक़ उसका पीछा नहीं छोड़ेगा।

सिसोदिया ने स्पष्ट कहा कि “वन्दे मातरम् किसी दल, वर्ग, समुदाय या विचारधारा का विषय नहीं है। यह राष्ट्र की सामूहिक चेतना, गौरव और अखंड प्रतिबद्धता का शाश्वत संकल्प है। इसे तुष्टिकरण के चश्मे से देखना न केवल अनुचित है, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का अनादर भी है।

उन्होंने कहा कि “नई पीढ़ी को ‘वन्दे मातरम्’ के ऐतिहासिक महत्व, साहित्यिक सौंदर्य और राष्ट्रप्रेरक शक्ति के बारे में व्यापक रूप से अवगत करवाया जाना चाहिए। विद्यालयों, महाविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में इस विषय पर नियमित व्याख्यान, परिचर्चाएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। राष्ट्र की नई पीढ़ी इस महामंत्र के अद्भुत चमत्कार और शक्ति से परिचित हो, यह समय की पुकार है।

अंत में सिसोदिया ने कहा कि “वन्दे मातरम् केवल राष्ट्रीय गीत नहीं, यह भारत माता के चरणों में अर्पित राष्ट्रभक्ति, समर्पण और श्रद्धा का शाश्वत घोष है। इसकी गरिमा, प्रतिष्ठा और सर्वोच्चता युगों-युगों तक अक्षुण्ण रहेगी।

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