कांवड़ के स्वरूप को लेकर संत समाज का नया विवाद

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हरिद्वार: इस बार हरिद्वार में कांवड़ मेले में शुरू से ही विवाद सामने आते रहे। पहले दुकानों पर नेमप्लेट का विवाद सामने आया, फिर कांवड़ मार्ग पर मस्जिदों को ढकने की भी काफी चर्चा हुई। अब संतों ने कांवड़ों को ताजियों का रुप देने की बात कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया है।

संतों का कहना है कि शिवभक्त हरिद्वार से गंगाजल ले जाने के लिए जिस कांवड़ का उपयोग करते हैं, उसके निर्माण में समुदाय विशेष की बड़ी भागीदारी है।

यह आजीविका का मामला है, सो इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं। लेकिन इसकी आड़ में हमारी आस्था, प्रतीक व भावनाओं को बदलने, उन्हें खंडित करने और सनातनी प्रतीक के स्थान पर अपने धार्मिक प्रतीक को बढ़ावा देने का षड्यंत्र करने को सहन नहीं किया जाएगा। इस तरह की प्रवृत्ति धार्मिक सद्भाव और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ठीक नहीं है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने कहा है कि इस तरह की प्रवृत्ति धार्मिक सद्भाव और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ठीक नहीं है। सभी को दूसरे धर्मों के प्रतीक और आस्था-विश्वास का सम्मान करना चाहिए।

कहा कि मोहर्रम के ताजिये को कांवड़ का रूप देना संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। इस तरह की सोच और षड्यंत्र पर प्रभावी रोक लगनी चाहिए।

जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि ने कहा है कि मोहर्रम के ताजिये को कांवड़ का रूप देना असहनीय है। हमें किसी जाति, धर्म और उसकी आजीविका से समस्या नहीं, लेकिन इसकी आड़ में आस्था व धार्मिक प्रतीक पर हमला कतई स्वीकार नहीं है।

श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के महामंडलेश्वर स्वामी रूपेंद्र प्रकाश और महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि ने आरोप लगाया है कि यह जलाभिषेक और कांवड़ यात्रा की पवित्रता को खंडित करने का षड्यंत्र है।

श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि ने कहा कि कांवड़ का रंग, उसके आकार-प्रकार में बदलाव की बात स्वीकारी जा सकती है, लेकिन मोहर्रम के ताजिये को कांवड़ के तौर पर कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगनी चाहिए।

ज्ञात रहे कि कांवड़ मेले में इस प्रकार की कांवड़ों का चलन कोई नया नहीं है बल्कि सालों से इस प्रकार की कांवड़ें कांवड़ मेले में बनती, बिकती और कांवड़ भक्तों द्वारा ले जाई जाती रही हैं।

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